मान्यवर: भारत, नेपाल और चीन सीमा से लगे इस इलाके में हिमालय की नदियों से मिलकर बनी एक घाटी है, जो नेपाल और भारत में बहने वाली काली या महाकाली या शारदा नदी का उद्गम स्थल है। इस इलाके को कालापानी भी कहते हैं।
इसी इलाके में लिपुलेख दर्रा भी है। यहां से उत्तर-पश्चिम की तरफ कुछ दूरी पर एक और दर्रा है जिसे लिंपियाधुरा दर्रा कहते हैं।
दो नदियों से हुआ था भारत-नेपाल सीमा का निर्धारण
अंग्रेजों और नेपाल के गोरखा राजा के बीच 1816 में हुए सुगौली समझौते में काली नदी के जरिए भारत और नेपाल के बीच सीमा का निर्धारण किया गया था।
भारत की उत्तरी सीमा से सटे नेपाल की पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं का निर्धारण दो नदियों से हुआ है। पश्चिम में काली नदी और पूर्व में मेची नदी। यानी पश्चिम से पूर्व के बीच नेपाल दो अलग-अलग नदियों से भारत से अलग होता है।
भारत-नेपाल के बीच काली नदी के उद्गम स्थल को लेकर है विवाद
सुगौली समझौते के अनुसार काली नदी के पश्चिमी क्षेत्र को भारत का इलाका मना गया, जबकि नदी के पूर्व में पड़ने वाला इलाका नेपाल का हो गया।
पहाड़ी नदी होने की वजह से इलाके में काली नदी की दो धाराएं बहती हैं। जो कुछ दूर बाद ही मिलकर एक धारा बना जाती है।
भारत पूर्वी धारा को काली नदी का उद्गम मानता है। वहीं नेपाल पश्चिमी धारा को उद्गम धारा मानता है और इसी आधार पर दोनों देश कालापानी के इलाके पर अपना-अपना दावा करते हैं। त्रिकोण के आकार का यह इलाका का 338 वर्ग किलोमीटर एरिया में है।
नेपाल की पश्चिमी सीमा पर भारत से सीमा का निर्धारण काली नदी से हुआ। मतलब यह है कि काली नदी का पश्चिमी इलाका हिंदुस्तान है पूर्वी इलाका नेपाल है।
काली नदी के उद्गम स्थल, यानी ये सबसे पहले कहां से निकलती है, इसे लेकर दोनों देशों के बीच विवाद रहा है।
नेपाल के अनुसार काली नदी के पूर्व की शुरुआत नदी के उद्गम स्थल से होनी चाहिए। उसके अनुसार नदी का उद्गम स्थल लिंपियाधुरा के पास के पहाड़ों में है।
नेपाल का दावा है कि जब काली नदी लिंपियाधुरा से शुरू होती है तो उसके नीचे का पूरा इलाका उसका है। लिंपियाधुरा के नीचे के इलाके में लिपुलेख और कालापानी आते हैं, यानी नेपाल इन तीनों पर अपना दावा ठोकता है।
दूसरी ओर, भारत का कहना है कि नदी का उद्गगम कालापानी से शुरू होता है, ऐसे में सीमा कालापानी से शुरू होती है।
मतलब कालापानी और उसके पश्चिमी हिस्से, लिंपियाधुरा और लिपुलेख उसके इलाके हैं। भारत का तर्क अंग्रेजों द्वारा नेपाल से 1816 की संधि पर भी आधारित है।
इस विवाद की एक वजह ये भी है कि नदी के रास्ते में हर साल कुछ न कुछ बदलाव होता रहता है, इसलिए भी सीमा के एकदम सटीक निर्धारण में दिक्कत होती है।
लिपुलेख दर्रे से गुजरती है मानसरोवर यात्रा, चीनी सेना पर निगरानी भी आसान
उत्तराखंड के पिथौराढ़ जिले में स्थित कालापानी भारत-नेपाल-चीन के बीच रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण ट्राई-जंक्शन है।
कालापानी से भारत बहुत आसानी से चीनी सेना पर नजर रख सकता है। भारत ने पहली बार 1962 के युद्ध में यहां सेना तैनात की थी। इलाके के महत्व को देखते हुए इन दिनों यहां भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) तैनात है।
भारत से मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्री इसी इलाके के लिपुलेख दर्रे से होकर गुजरते हैं।
भारत ने 1962 में लिपुलेख दर्रे को कर दिया था बंद
1962 में चीन के हमले के बाद भारत ने लिपुलेख दर्रे को बंद कर दिया था।
2015 में चीन के साथ व्यापार और मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने के लिए इसे दोबारा खोला गया।
मई 2020 में भारत ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को सुगम बनाने के लिए पिथौरागढ़ से लिपुलेख दर्रे तक 80 किमी लंबी नई सड़क का उद्घाटन किया था, जिसे लेकर नेपाल ने नाराजगी जताई थी।
नेपाल को उकसाने के पीछे चीन का हाथ
अंग्रेजों के साथ संधि के करीब 100 साल बाद तक इस इलाके को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। यहां तक कि भारत ने 1962 में चीनी आक्रमण को रोकने के लिए इस इलाके में अपनी सेना तक तैनात कर दी थी। अभी भी इस इलाके के कई हिस्सों में भारतीय सेना तैनात है।
1990 में नेपाल के राजशाही से लोकतंत्र की ओर बढ़ाते ही इस इलाके को लेकर विरोध के सुर उठने लगे।
ये विवाद 2015 में तब गहराया जब कम्युनिस्ट नेता केपी ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बने। ओली ने नेपाल के परंपरागत दोस्त भारत के बजाय चीन से नजदीकियां बढ़ाईं।
बदले में चीन ने नेपाल में विभिन्न परियोजनाओं में अरबों डॉलर झोंक दिए, लेकिन चीन के ऐसा करने के पीछे असली मंशा सदियों से भारत के करीबी रहे नेपाल को भारत के खिलाफ उकसाने की थी।
पिछले साल देश के थल सेनाध्यक्ष एम.एम नरवणे ने कहा था कि नेपाल ऐसा किसी और के बहकावे में कर रहा है। नरवणे का इशारा चीन की ओर था।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी लिपुलेख में भारत द्वारा सड़क निर्माण पर नेपाल की आपत्ति के बाद कहा था कि नेपाल को इस मुद्दे पर गुमराह किया गया है।